मुझे लगता हैं एक बार फिर से आज़ादी की व्याख्या खोजी जानी चाहिए. शहीदों को नमन करके, यहाँ कहना चाहता हूँ कि उनकी सालाना याद न केवल नाकाफी हैं वरन उनकी शहादत का अपमान हैं. अब जरुरत हैं उन्हें जिया जाये. उन्हें पून्ह खोजा जाये. हालत फिर वेसे ही हैं. कद बौने हो चुके हैं, और कुर्सिया बड़ी हो चली हैं. कुछ पंक्तिया लिखी थी कही, उन्हें याद करके आज स्वतंत्रता दिवस कि शुभकामनाये प्रेषित करता हू.
ये जो जिसे कहते है जिन्दंगी,
सबको जीनो दो.
कुछ उम्मीदों को, तो पलने दो,
छोटा सा ही सही, एक दीप तो जलने दो.
चलो इस नए ब्लॉग को आरंभ किया जाये...
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